Rohit’s Blog!

Being in this world…

इस बार नहीं

इस बार नहीं

इस बार नहीं जब वो छोटी सी बच्ची मेरे पास अपनी खरोंच लेकर आयेगी

मैं उसे फूं-फूं कर नहीं बहलाऊँगा

पनपने दूंगा उसकी टीस को

इस बार नहीं

इस बार जब मैं चेहरो पर दर्द लिखा देखूंगा

नहीं गाऊँगा गीत पीड़ा भुला देने वाले

दर्द को रिसने दूगा , ऊतरने दूँगा अन्दर गहरे

इस बार नहीं

इस बार मैं ना मरहम लगाऊँगा

ना ही ऊठाऊँगा रूई के फोहे

और ना ही कहूँगा कि तुम आँखे बन्द कर लो

गर्दन ऊधर करलो मैं दवा लगा देता हूँ

देखने दूँगा सबको हम सबको खुले नंगे घाव

इस बार नहीं

इस बार जब ऊलझनें देखूँगा छटपटाते देखूँगा नहीं दौड़ूँगा ऊलझी डोर लपेटने

ऊलझनें दूँगा जब तक ऊलझ सके

इस बार नहीं

इस बार कर्म का हवाला देकर नहीं ऊठाऊँगा औजार

नहीं करूँगा फिर से एक नई शुरूआत

नहीं बनूँगा एक मिसाल एक कर्मयोगी की

नहीं आने दूँगा जिन्दगी को आसानी से पटरी पर

ऊतरने दूँगा उसे किचड़ में, टेढे मेढे रास्तों पे

नहीं सूखने दूँगा दिवारों पर लगा खून

हल्का नहीं पड़ने दूँगा उसका रंग

इस बार नहीं बनने दूँगा उसे इतना लाचार

कि पान की पीक और खून का फर्क ही खत्म हो जाए

इस बार नहीं

इस बार घावों को देखना है

गौर से

थोड़ा लम्बे वक्त तक

कुछ फैसले

और उसके बाद हौंसले

कहीं तो शुरूआत करनी ही होगी

इस बार यही तय किया है

– प्रसून जोशी

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