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Being in this world…

क्वॉरंटीन , आइसोलेशन और छुआ छूत का इतिहास – ब्लडी इंडियन ।

जब किसी की मृत्यु होती थी तब भी 13 दिन तक उस घर में कोई प्रवेश नहीं करता था। यही आइसोलेशन था। क्योंकि मृत्यु या तो किसी बीमारी से होती है या वृद्धावस्था के कारण जिसमें शरीर तमाम रोगों का घर होता है। यह रोग हर जगह न फैले इसलिए 14 दिन का क्वॉरंटीन बनाया गया।

जो शव को अग्नि देता था उसको घर वाले तक नहीं छू सकते थे 13 दिन तक। उसका खाना पीना, भोजन, बिस्तर, कपड़े सब अलग कर दिए जाते थे। तेरहवें दिन शुद्धिकरण के पश्चात, सिर के बाल हटवाकर ही पूरा परिवार शुद्ध होता था। तब भी आप बहुत हँसे थे। ब्लडी इंडियन कहकर मजाक बनाया था।

जब किसी रजस्वला स्त्री को 4 दिन आइशोलेशन में रखा जाता है ताकि वह भी बीमारियों से बची रहें और आप भी बचे रहें तब भी कुछ लोग पानी पी पी कर गालियाँ दी।

जब मां बच्चे को जन्म देती है तो जन्म के 11 दिन तक बच्चे व माँ को कोई नही छूता था ताकि जच्चा और बच्चा किसी इंफेक्शन के शिकार ना हों और वह सुरक्षित रहे लेकिन इस परम्परा को पुराने रीति रिवाज, ढकोसला कह कर त्याग दिया गया।

जब किसी के शव यात्रा से लोग आते हैं घर में प्रवेश नहीं मिलता है और बाहर ही हाथ पैर धोकर स्नान करके, कपड़े वहीं निकालकर घर में आया जाता है, इसका भी खूब मजाक उड़ाया आपने।

आज भी गांवों में एक परंपरा है कि बाहर से कोई भी आता है तो उसके पैर धुलवायें जाते हैं। जब कोई भी बहू लड़की या कोई भी दूर से आता है तो वह तब तक प्रवेश नहीं पाता जब तक घर की बड़ी बूढ़ी लोटे में जल लेकर, हल्दी डालकर उस पर छिड़काव करके वही जल बहाती नहीं हों, तब तक। खूब मजाक बनाया था न।

संक्रमण के अंदेशा वाला कार्य करने वाले लोगो को तब तक नहीं छूते थे जब तक वह स्नान न करले। आज जब आपको किसी को छूने से मना किया जा रहा है तो आप इसे ही विज्ञान बोलकर अपना रहे हैं। क्वॉरंटीन किया जा रहा है तो आप खुश होकर इसको अपना रहे हैं। पर शास्त्रों के उन्हीं वचनों को तो हम सब भुला दिये। सनातन धर्म का अपमान करते रहे।

आज यह उसी का परिणति है कि आज पूरा विश्व इससे जूझ रहा है। याद करिये पहले जब आप बाहर निकलते थे तो आप की माँ आपको जेब में कपूर या हल्दी की गाँठ इत्यादि देती थी रखने को।

यह सब कीटाणु रोधी होते हैं।शरीर पर कपूर पानी का लेप करते थे ताकि सुगन्धित भी रहें और रोगाणुओं से भी बचे रहें। लेकिन सब आपने भुला दिया। कुछ लोगों को तो अपने शास्त्रों को गाली देने में परमानंद मिलता है।

जब हिन्दू एक दूसरे को हाथ जोड़ कर नमस्ते कर रहा था तो दुनिया उन पर हंस रही थी।

जब हिन्दू हाथ पैर धोकर घर मे घुसता था तो दुनिया उन पर हंसती थी।

जब हिन्दू जानवरों की पूजा कर रहे थे तब दुनिया उन पर हंस रही थी।

जब हिन्दू पेड़ों और जंगलों को पूज रहे थे तब दुनिया उन पर हंस रही थी

जब हिन्दू मुख्यतः शाकाहार पर बल दे रहे थे तब दुनिया उन पर हंस रही थी।

जब हिन्दू योग, प्रणायाम कर रहा था तब दुनिया उन पर हंस रही थी।

जब हिन्दू श्मशान और अस्पताल से आकर स्नान करते थे तब भी दुनिया उन पर हंस ही रही थी।

लेकिन अब ? अब कोई नही हंस रहा, बल्कि सब यही अपना रहे हैं।

सच ही कहा गया है हिन्दू सनातनी जीवन एक जीवन पद्धति है. ज्यों ज्यों इसकी गहराई में जाते है त्यों त्यों गहराई बढ़ती ही जाती है, जिसका कहीं अंत नहीं..

अपने शास्त्रों के स्तर को,इसे जिस दिन हम सब समझेंगे तो यह देश विश्व गुरु कहलायेगा। उम्मीद है इस लेख को पढ़ने से आपको समझ आया होगा हमारी संस्कृति कितनी पवित्र है। पर यह दुखद है की हम में से बहुत मॉडर्न होने के चक्कर में विदेशी रीति के कुछ तर्कहीन और आसान पद्धति को अपनाना पसंद करते है।

 

 

 

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