हर सुबह की तरह आज भी मैं बच्चों को स्कूल छोड़ कर सैर पर निकल दिया। लगभग पांच किलोमीटर की सैर करने के बाद जैसे ही घर की ओर जाती निचली सड़क पर मुड़ा, रोज़ की तरह काम पे जाते लोगों के बीच थोड़े अंतराल मे आज फिर से उन दो खामोश चेहरों को देख कर मे गुमसुम सोच मे डूब गया।
ये ख़ास चेहरे उन दो युवतियों के थे जो मुझे अक्सर इसी वक़्त अलग-अलग दिख जाया करती हैं। दोनों चेहरों के पीछे एक अलग कहानी छुपी हुई है। अपनी अपनी कहानी बुनते हुए ये व्यस्त सी दीखतीं ये मेरे ठीक सामने से आ कर चुचाप मेरे बगल से होते हुए गुज़र जातीं ।
इनकी खामोशी मुझे कुछ ज़्यादा ही खटकने लेगी थी शायद मैंने इन्हे कभी भी किसी से कुछ कहते बोलते नहीं सुना था।
एक का चेहरा शांत कोमल, संवरे खुले बाल आँखें नीची किये और होंठों पे एक मीठी सी मुस्कान लिए आगे बढ़ती जाती और ज्यों ही वो मेरे बगल से गुज़री पूरे माहौल मे एक भीनी सी सुगंध फैल जाती
दूसरी जोकि चेहरे पे चिंता और उदासी ओढ़े रहती उसके मुँह पर कुछ निशान थे गालों मे गड्डे और आँखों के नीचे छाइयाँ। आकर्षण का मानों दूर दूर तक उस से कोई लेना देना ना था। बस तेज़ी से बढ़ते कदम मानो जल्द से जल्द कहीं पहुंच जाना चाहते।
क्या इनके मन नहीं इनके चेहरों की तह ही होंगे या फिर ठीक इसके उलट, अक्सर यही प्रश्न रह रह कर मेरे मन को कटोचता। शायद कुछ प्रश्नों के उत्तर हमें कभी नहीं मिलते।
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