सभी दिनों की तरह कल शाम ऑफिस से घर लौटते समय घर जल्दी पहुँचने की ललक में कलरव क्रूजित सड़क पर गाड़ियों की भीड़ को चीरते हुए मैं अपने दुपहिया पर तेज़ी से ज्यों ही मैं आगे बढ़ता जा रहा था..
यकायक मैंने पाया के एक लाल रंग की कार शायद मेरे आगे निकलने से विचलित हो उठी है और ध्वनी प्रदुषण फैलाते हुए फिर से आगे बढ़ने के लिए प्रयतनशील हो उठी है।
पर तंग पहाड़ी रास्तों में से होते हुए जब दुपहिया हवा से बातें करने लगे तो भला किसी दुसरे बड़े वाहन की क्या मजाल…
पर इस लाल कार की कुछ और ही बात थी शायद इसका चालक घुटने टेकने को तैयार नहीं था। काफी आँख मिचौली खेलने के बाद अंततः मैंने इसे आगे निकल जाने देने का निश्चय कर लिया और ज्यों ही एक खुली जगह पर मैं बिलकुल सड़क के एक छोर से कच्चे रास्ते पर उतर गया।
आगे निकलती हार्न बजाती लाल कार ज्यों ही आगे निकली उसमे से एक लहराता हुआ हाथ ऊपर उठा मानो अपनी विजय का जश्न मना रहा हो।
पर यह क्या! विजयी चालक सामने से अत्यंत वेग से आती वैसी ही दूसरी कार की दिशा का सही सही अनुमान नहीं लगा पाया, और दोनों गाड़ियों के कोने धड़ाम से एक दुसरे से जा टकराए।
उत्सुकतापूर्वक मैंने अपना मोटरसाईकिल सड़क के किनारे खडा कर दिया दोनों गाडियां भी अपनी अपनी दिशा में जा खड़ी हुई| दुसरा झटका यह था के लाल कर में से जो सज्जन बाहर निकले वो और कोई नहीं अपना लंगोटिया यार अमित शर्मा था, जिसे मैं पिछले लगभग एक साल से ज्यादा समय से नहीं मिला हूँ।
पूरी कहानी समझ में आते मुझे देर न लगी, मेरा मित्र मेरा ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने की पुरजोर कोशिश कर रहा था और ज़रा सा ध्यान बंटने की वजह से दुर्घटना का शिकार होते होते बाल बाल बचा था।
खुशी थी की किसी को कोई चोट नहीं लगी परन्तु वाहनों का मामूली नुक्सान हुआ था | दुसरे वाहन को मुआवजे के रूप में लगभग पंद्रह हज़ार रुपये देने पड़े और कुछ इतना ही नुक्सान अपने वाहन का उठाना पड़ा।
शायद सड़क पर की हुई यह कोई नक्षत्रिय चाल थी यह कह कर मैंने अपने घबराए मित्र को ढादास बंधाने की कोशिश की।
शुक्र है कोई बड़ा नुक्सान नहीं हुआ।