एक गमले में अचानक एक सफ़ेद चीज़ देख कर मैं यकायक चौंक गया। लगा मानों जैसे पत्तों के बीच में कोई रोयेंदार चीज़ थी वह, मैंने पत्ते हटा कर उसे स्पर्श किया और ढुलक दिया, एक नन्ही चिड़िया का शव था वहां। एक बहुत ही प्यारी मासूम नन्ही चिड़िया मगर प्राणहीन। ऐसा लग रहा था मानों गहरी नींद में सो रही हो। मैंने फूलों को पानी देने वाली बोतल की पिचकारी से उसके मुंह की तरफ निशाना बना कर उसे जगाने और पानी पिलाने का असफल प्रयास किया।
अक्सर इन चिड़ियों को अपनी खिड़की के पास उचकते, चहचाते और अनेकों अठखेलियां करते देखता हूँ। कहीं पढ़ा था ‘गुड लक स्पैरो’ कहते हैं इन्हें शायद। अक्सर सोचता हूँ कितने ऊर्जावान हैं ये नन्हें प्राणी! निचले तल पर बाबूजी द्वारा इनके दाना पानी का इंतज़ाम हमेशा रहता है और उन्हें देखते ही सारी चिड़ियाँ मिल कर बहुत शोर करती हैं मानो कोई नन्हा बच्चा अपनी माँ को देख कर करता है।
पूरे ऑफिस का निरीक्षण किया तो पता चला, हर कोने में चिड़िया ने अपनी मौजूदगी के निशान छोड़े थे। खिड़कियों और मेज़ों पर छोटे बीट के निशान। दीवार पर टेक लगा कर रखी तस्वीरें चिड़िया की फड़फड़ाने की वजह से ज़मीन पर आ गिरीं थी।
शुक्रवार शाम जल्दी ऑफिस बंद करने के बाद मैं परिवार सहित माँ और बाबूजी से मिलने बाग़ वाले घर पर चला गया था जोकि चार घंटे की दूरी पर स्थित है। आज सोमवार सुबह तीन रातें बीत जाने के बाद ही ऑफिस खुला था।
शुक्र की रात तो जैसे तैसे नन्ही चिड़िया झेल गयी होगी। मैं कोने में लगे मनी प्लांट में हमेशा काफी पानी डाल कर रखता हूँ जो अक्सर दो तीन दिन तक पर्याप्त रहता है। शनिवार का दिन ना जाने कैसे बड़ी मुश्किल से कभी न ख़त्म होने वाले इंतज़ार में निकला होगा। और ना जाने क्या क्या भरसक कोशिशें की होगी उस नन्ही जान ने वहां से निकलने की।
राज कुमार राव द्वारा अभिनीत चलचित्र ‘ट्रैप्ड’ के दृश्यों का ध्यान हो आया, जिसमे नायक बंद फ्लैट में से बाहर निकलने का रास्ता आखिरकार निकाल ही लेता है। मगर अफ़सोस अपनी ये चिड़िया शायद इतनी खुशकिस्मत नहीं थी। अगर उसने इतवार तक संघर्ष किया होगा तो फिर शायद भूख और प्यास से उसने इस अंतिम रात्रि को अपनी प्राण छोड़े होंगे, या फिर शायद अकेलेपन के अवसाद, खिन्नता और चिंता से हृदयाघात पहली रात ही हो गया हो।
खैर जो भी हो प्राण त्यागने से पहले उसने अपनी लिए पूरे ऑफिस में गमले के मध्य पौधे के नीचे के स्थान को चुना और शायद उस हरे भरे पौधे से आँखों ही आँखों में कुछ बतियाया भी हो…
इसी दिन शाम को भी एक चिड़िया खिड़की पर आयी थी। उदास थी शायद, टकटकी बाँध कर अंदर देख रही। मेरी ओर देखते ही फुर्र से उड़नछू हो गयी मानों मैंने उसका विश्वास खो दिया हो।
इस अनुभव के बाद अब रोज़ शाम को ऑफिस बंद करते समय नज़रें घूमा कर देख लेता हूँ कि शायद किसी उम्मीद में कोई नन्हा साथी अंदर प्रवेश न कर गया हो।
Image : urtasunphoto.se
Ultimate… Rohit Ji
बहुत बहुत शुक्रिया दीपक जी।
वाह क्या बात है रोहित जी। पहली बार आप की शुद्ध हिंदी का अनुभव हुआ। अक्सर आप को ऊर्दू के अल्फ़ाज़ प्रयोग करते सुना है।
बहुत बहुत धन्यवाद भूषण जी।
Wow rohit bhaiya! Jabardast..
थैंक्स ज्योति।
प्रिय मित्र रोहित।
आप को हार्दिक बधाई।
आपने अत्यंत ही मार्मिक वर्णन प्रस्तुत किया है अपनी रचना में।
यह आपके व्यक्तित्व का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है। अभी केवल इतना ही लिख पाऊँगा। क्यूंकि मैं हिंदी मे टाईप कर पाने में अधिक दक्ष नहीं हँ।
आपसे मिलने की प्रतीक्षा में।
प्रिय मित्र शुभकामनाओं के लिए आभार। भाषा से अधिक महत्व आपकी भावना का है। उम्मीद है आपसे जल्द मुलाकात होगी।