Arti Raina
वो बाईस सालों के बाद मेरा जन्मभूमि पर कदम
एक नया जोश, एक नयी लहर मन मे हरदम
वो जो फिसल गयी उँगलियों से रेत की तरह बचपन के साल
और जो सहा है हम सब ने वो हाल
वो डर, वो शक, वो उदासी और वो गम की लहर
कही गोली की आवाज़ और कहीं फटते हुए बम का कहर
The poetess is an enthusiast for life and is an active worker and consultant for helping out mentally challenged children and parents of such children. She is a Kashmiri Migrant who expresses her grief of separation from the homeland in a very touching manner ..
वो उदासी डरा रही थी मेरे बेबस मन को कहीं, पर मन
ना ये माना इस बार कुछ भी
वो वादी की महक और फिजाओं में वो शर्मीलापन
वो डल की खुली बाहें,
मौसम का अंदाज़ और वो अपनापन
वो वतन लौट के आने की सालों से मन में चुभन,
और यूं पैदल घूमना, देखना वो बिछड़ा घर और सहन
वो अपनेपन के माहोल में ख़ुशी घुली हुई,
और यूं हालात देख कर मन को बहुत ख़ुशी हुई
सालों बाद एक दूसरे को यूं देखना,
और जो सहा है दोनो ने बिना कुछ कहे आँखों से बयान करना
वो छलकती आँखों का छलक कर बरसना,
और वो दबी भावनाओं को यूं बहते देना
वो सादियो का दर्द जो दफ़न हो चुका था दिलोदिमाग मे कहीं
आज वो निकला अश्कों से यूं ही, वो धीरे धीरे पिघलता मन का गुबार कहीं
हल्का कर गया मेरे दिल का यह भार यूं ही वो दर्द का एहसास
और अपने वतन से बिछुडने का वो गम घुल चला अश्कों में बहता हरदम
वो नई चहक और परिंदों का हंस कर उड़ना
वो केसर की महक और वो नदी का कल कल बहना
वो अपनेपन की कुछ बात ही अलग है यूं ही
जो ना देखी है और ना देखा गया कहीं
बस जी ये चाहा की मैं ठहर जाऊं यूं ही कहीं
और बहने दूं ये अश्कों की बरसात यूं ही
आज सोई हूँ कई सालों के बाद में यूं ही
अब वतन लौटने की जागी हैं मन में उम्मीद नई
मन में उम्मीद नई…
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